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राजा विक्रमादित्य एक महान और न्यायप्रिय राजा थे, जिनकी बुद्धिमत्ता और सच्चाई के लिए वे प्रसिद्ध थे। उनके राज्य में शांति और खुशहाली थी। राजा रोज़ मंदिर में पूजा करते थे और लोग अपनी समस्याएँ लेकर उनके पास आते थे। एक दिन वहाँ एक साधु आए, जो राजा को रोज़ एक फल भेंट में देते थे और बिना कुछ कहे खड़े रहते। जब राजा ने उनके द्वारा दिए फलों को काटा, तो उन्हें उसमें हीरे और रत्न मिले। राजा ने अगले दिन साधु से मिलकर उन कीमती रत्नों को वापस दे दिया और कहा कि वे ऐसा उपहार स्वीकार नहीं करना चाहते। साधु ने बताया कि उसने ऐसा राजा का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया था और एक यज्ञ में उनसे सहायता मांगी। साधु ने राजा को रात को अकेले आने को कहा, जिसे राजा ने मान लिया। रात को राजा साधु के आश्रम पहुँचे और यज्ञ में शामिल हुए।
साधु ने राजा को कहा कि यहाँ से दो कोस दूर एक पेड़ पर एक मुर्दा उल्टा लटका हुआ मिलेगा, उसे उस मुर्दे को उनके पास लेकर आना है। राजा ने वचन पूरा करने के लिए अपनी यात्रा शुरू की और उस मुर्दे के पास पहुँच गए। जब राजा ने पेड़ पर लटके मुर्दे को उठाया, तो पेड़ पर लटका हुआ मुर्दा, जिसका नाम बेताल था, राजा से जोर जबरदस्ती करने लगा। लेकिन राजा ने अपने बल से बेताल को पकड़ा और कंधे पर लटका लिया। बेताल ने राजा से कहा कि वह उसे एक कहानी सुनाएगा और अगर राजा उस कहानी को सुनने के बाद कुछ बोले तो वो उड़कर वापस पेड़ पर चला जाएगा। उसकी ये बात सुनकर राजा चुपचाप कहानी सुनने लगे। फिर बेताल ने एक कहानी सुनाई:
एक बार दो दोस्त सूर्यमल और चन्द्रसेन एक देवी मंदिर के दर्शन के लिए निकले। सूर्यमल को मंदिर में एक कन्या पसंद आई और जिसे वो अपनी पत्नी बनाना चाहता था। सूर्यमल अपने दोस्त के साथ कन्या के पिता के पास गया और शादी की बात की। कन्या के पिता ने एक शर्त रखी कि उसकी बेटी देवी माँ की भक्त है और उसे सुबह-शाम देवी माँ के दर्शन करने होते हैं। और वो शादी के बाद भी उस नियम को जारी रखेगी। सूर्यमल ने कन्या के पिता की यह शर्त मान ली और उन दोनों की शादी हो गई।
शादी के बाद, सूर्यमल अपनी पत्नी के साथ घर की ओर लौट रहा था पर रास्ते में कुछ डाकू उनकी बारात पर हमला कर देते हैं और लूटपाट करने के बाद सूर्यमल और चन्द्रसेन को मार देते हैं। सूर्यमल की पत्नी लूटपाट के समय छिप जाती है और जब वापस आती है, तो वो दोनों दोस्तों की लाशें देखती है जिनके सिर धड़ से अलग हो चुके थे।
पत्नी अपने पति सूर्यमल के मृत शरीर को देखकर रोने लगती है और प्राण देने लगती है। तभी देवी माँ वहाँ प्रकट होती हैं और कहती हैं कि वो अपने प्राण ना दें,और कहती हैं कि वो उन दोनों को जीवित कर देंगी। देवी माँ कन्या को बोलती हैं कि तुम जल्दी से उनके सिर और धड़ को जोड़ दो और ये सुनकर खुशी-खुशी में और जल्दी में पत्नी गलती से सूर्यमल के सिर को चन्द्रसेन के धड़ पर और चन्द्रसेन के सिर को सूर्यमल के धड़ पर जोड़ देती है। और वो दोनों जीवित हो जाते हैं। और यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
कहानी समाप्त होने के बाद अब बेताल राजा विक्रमादित्य से पूछता है कि अब वो कन्या किसे अपना पति स्वीकार करेगी। राजा विक्रमादित्य ने बहुत सोच-विचार करने के बाद उत्तर दिया कि सिर शरीर का मुख्य अंग होता है और वही सारे अंगों को नियंत्रित करता है। इसलिए जिस धड़ पर सूर्यमल का सिर लगा है, वही उसका पति है।
राजा विक्रमादित्य का उत्तर सुनकर बेताल उड़कर वापस पेड़ पर लटक जाता है, जैसा कि उसने पहले शर्त रखी थी।
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